Kyä Shôr Sä
आँख खुलने की देर है
जकड़ लेती है सोच को हैवानियत सी सरचढ़ी
फुसफुसा कर फ़ौज सी कुछ खेल सा है खेलती
बीती बातों का भूत सा या है आलौकिक कल्पना
सन्नाटे में दहकती चीखती परजीवी आग सी
बीता नहीं मर चुका बचपन तबियत पूछ जाता है
ह्रदय रूपी जानवर सा कुछ क्षण का सुख पाता है
रूह की ये बेरुखी सी लगती है जाने क्या टटोलने
धूप में तपती सड़क सा मन फिर शांत हो जाता है
आँख मूंदने की देर है
जकड़ लेती है सोच को हैवानियत सी सरचढ़ी
फुसफुसा कर फ़ौज सी कुछ खेल सा है खेलती
बीती बातों का भूत सा या है आलौकिक कल्पना
सन्नाटे में दहकती चीखती परजीवी आग सी
बीता नहीं मर चुका बचपन तबियत पूछ जाता है
ह्रदय रूपी जानवर सा कुछ क्षण का सुख पाता है
रूह की ये बेरुखी सी लगती है जाने क्या टटोलने
धूप में तपती सड़क सा मन फिर शांत हो जाता है
आँख मूंदने की देर है
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